प्रतापगढ़, राजस्थान के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ, जब सांवरिया जी मंदिर, एरिया पति रोड पर तीन दिवसीय शिखर कलश स्थापना एवं नव कुंडीय यज्ञ का भव्य आयोजन शुक्रवार से प्रारंभ हुआ। इस शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी और मंदिर प्रांगण भक्तिमय माहौल से गूंज उठा।
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🚩 कलश यात्रा ने किया पूरे शहर को भक्तिमय
कार्यक्रम की शुरुआत शुक्रवार को शोभायात्रा से हुई। यात्रा सांवरिया जी मंदिर से आरंभ होकर आबकारी रोड, गांधी चौराहा, राम कुंड, एमजी रोड, होते हुए पुनः मंदिर परिसर पहुंची।
यात्रा में सैकड़ों महिलाएं केसरिया रंग की साड़ियों में, सिर पर कलश लेकर चल रही थीं। यह दृश्य पूरे शहर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर रहा था।
“सांवरिया सेठ की महिमा अपार है, उनके दर्शन और सेवा से जीवन में शांति आती है।”
📖 सत्यनारायण कथा और भजन संध्या से हुआ दिन का समापन
शाम 5 बजे सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। कथा के बाद सांवरिया सेठ की महाआरती की गई और रात में भजन संध्या ने पूरे वातावरण को संगीतमय कर दिया।
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🪔 दूसरे दिन हवन और सुंदरकांड का आयोजन
कार्यक्रम का दूसरा दिन – 17 मई, आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत रहेगा:
- 🕘 सुबह 9 बजे – पूजन एवं हवन
- 🌃 रात 8 बजे – सुंदरकांड का पाठ
इस दौरान श्रद्धालुओं के लिए विशेष भक्तिपूर्ण वातावरण तैयार किया गया है, जिससे शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव हो सके।
🔔 अंतिम दिन: शिखर स्थापना, महाप्रसादी और संतों का स्वागत
18 मई, आयोजन का तीसरा और अंतिम दिन होगा।
- 🕧 दोपहर 12:30 बजे – शिखर स्थापना और हवन पूजन
- 🕔 शाम 5 बजे – महाप्रसादी वितरण और संतों का स्वागत
यह आयोजन अंतरराष्ट्रीय रामसनेही समुदाय के भंडारी श्री शंभू राम जी महाराज के शिष्य संत श्री दिव्य श्री राम जी महाराज के सान्निध्य में संपन्न हो रहा है।
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🚓 प्रशासन की सतर्कता और सुरक्षा व्यवस्था
पूरे आयोजन में पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी संभाली। शोभायात्रा के दौरान कई स्थानों पर स्थानीय नागरिकों और व्यापारियों ने पुष्प वर्षा कर यात्रियों का स्वागत किया।

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🔎 निष्कर्ष: संस्कृति और श्रद्धा का उत्सव
प्रतापगढ़ के सांवरिया जी मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय महोत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह समाज को जोड़ने, सकारात्मक ऊर्जा फैलाने और हमारी परंपराओं के संरक्षण का भी प्रतीक है।
ऐसे आयोजनों से भावी पीढ़ियों को धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना संभव होता है।
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