उदयपुर के कोटड़ा क्षेत्र के अंबादेह गांव में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहाँ एक मासूम बच्चे को ₹45,000 में गिरवी रख दिया गया था। लेकिन इस अमानवीय स्थिति में उम्मीद की किरण बने सरकारी शिक्षक दुर्गाराम मुवाल, जिन्होंने जान की परवाह किए बिना इस मासूम को बदमाशों के चंगुल से छुड़वाया।
👉 पढ़िए पूरी कहानी दुर्गाराम की जुबानी — कैसे उन्होंने जाल में फंसे बच्चे को छुड़ाया और क्या है इस सामाजिक कुप्रथा की सच्चाई।
💡 गिरवी रखे गए बच्चे की सच्चाई
दुर्गाराम मुवाल, जो कि रेलवे ट्रेनिंग राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, उदयपुर में शिक्षक हैं, को सूचना मिली कि अंबादेह में एक पिता ने अपने 9 वर्षीय बेटे को गुजरात के ईडर क्षेत्र में किसी पशुपालक के पास गिरवी रख दिया है। ये सौदा ₹45,000 में हुआ था ताकि मिरखा नामक व्यक्ति दापा की रकम अदा कर सके।
🎯 टीचर की योजना और रेस्क्यू मिशन
दुर्गाराम ने अपने सहयोगी कुणाल चौधरी के साथ योजना बनाई और फोन नंबर के जरिए संपर्क साधा। सामने वाले व्यक्ति ने खुद को “मेहुल” बताया, लेकिन आगे जाकर ये खुलासा हुआ कि उसका असली नाम करणा भाई था।
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🌲 जंगल में पीछा और धोखा
जब दुर्गाराम और कुणाल अकोदरा गांव पहुंचे, तो करणा भाई ने उन्हें गुमराह करते हुए कांटों भरे जंगलों में घुमाया। एक झोंपड़ी दिखाई दी जहाँ बच्चे के होने की बात कही गई थी, लेकिन वो व्यक्ति वहां से गायब हो गया।
👉 चरवाहे ने खोली पोल
जब चरवाहे से पूछा गया तो उसने बताया कि इस क्षेत्र में कोई “मेहुल” नहीं है। वीडियो दिखाने पर उसने पहचान की और बताया कि वो करणा भाई है।
🏠 घर पहुंच कर खुलासा
करणा भाई के घर पहुंचने पर दुर्गाराम और कुणाल को सामने आई महिला ने चेतावनी दी – “छोकरों को छिपा दो”। वहाँ मौजूद लोगों ने मिलने से मना किया और जब टीम वापस लौटने लगी तो बाइक सवारों ने 10-15 किलोमीटर तक पीछा किया और हमला करने की कोशिश की।
📞 फोन आया: “बच्चे को ले जाओ, डेढ़ लाख तैयार रखो”
जल्द ही बच्चे के पिता मिरखा को करणा भाई का कॉल आया कि वह बच्चा लौटाने को तैयार है। इससे साबित हुआ कि टीचर की मेहनत रंग लाई।
लेकिन सवाल ये है:
क्या ये एक बच्चा ही था? या ऐसे और भी बच्चे इस व्यवस्था के शिकार हैं?
🧒🏼 गिरवी प्रथा: एक छुपा हुआ अपराध
जांच में सामने आया कि आदिवासी इलाकों में बच्चों को लीज या गिरवी पर देने की घटनाएं आम हैं। पैसे की तंगी में माता-पिता मासूमों को ₹1500 प्रतिमाह की किश्त पर बंधक बना देते हैं।
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🛑 दुर्गाराम की मुहिम
शिक्षक दुर्गाराम ने ठाना है कि वे ऐसे बच्चों की पहचान कर उन्हें इस बंधन से मुक्त कराएंगे। उन्होंने बताया कि इस सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए वे और भी जानकारियाँ जुटा रहे हैं।
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✍️ निष्कर्ष
यह घटना न केवल एक शिक्षक की निडरता को दर्शाती है बल्कि हमारे समाज में मौजूद गंभीर सामाजिक कुरीतियों को भी उजागर करती है। दुर्गाराम जैसे व्यक्तित्व से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और समाज में बदलाव लाने के लिए आगे आना चाहिए।
📌 आपके आसपास ऐसी कोई जानकारी हो, तो संबंधित प्रशासन को जरूर सूचित करें।