चित्तौड़गढ़ शिक्षा विभाग में टेंडर विवाद: नई फर्म को वर्क ऑर्डर मिलने के बावजूद पुरानी से काम, कर्मचारियों की जेब पर चोट
बिना लिखित आदेश के तीन महीने के बिल पास, पारदर्शिता पर उठे सवाल
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🎓 टेंडर मिला नई फर्म को, काम अब भी पुरानी कर रही – क्यों?
चित्तौड़गढ़ जिले के कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों में मैनपावर की नियुक्ति को लेकर बड़ा टेंडर विवाद सामने आया है।
समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत फरवरी 2025 में जिले के 21 स्कूलों के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी की गई थी, जिसमें लगभग 150 पदों पर नियुक्तियां होनी थीं।
पदों में शामिल थे –
- वार्डन
- लेखाकार कम लिपिक
- हेड कुक
- सहायक कुक
- चौकीदार
- पियून
- सफाईकर्मी
‘डिंग मैनपावर’ नाम की फर्म को सभी तकनीकी और वित्तीय शर्तें पूरी करने के बाद वर्क ऑर्डर मिला, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अब तक इस फर्म को काम शुरू नहीं करने दिया गया।
⚠️ पुरानी फर्म से काम – वो भी मौखिक आदेश पर!
नया वर्क ऑर्डर जारी होने के बावजूद, शिक्षा विभाग द्वारा पुरानी फर्म से ही मौखिक रूप से कार्य कराया जा रहा है, जिसकी कोई लिखित स्वीकृति नहीं है।
➡️ इससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं और कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
💸 कर्मचारियों को मिल रहा कम वेतन, PF और ESI में कटौती
टेंडर शर्तों के अनुसार, कर्मचारियों को ₹7410 से ₹9333 तक वेतन मिलना था।
लेकिन वास्तव में कर्मचारियों को ₹4000 से ₹6500 तक का ही भुगतान हो रहा है।
👉 इसके साथ ही उनके PF और ESI की कटौती भी मानकों से कम की जा रही है, जिससे भविष्य की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है।
📣 CDEO का बयान – “फैसला लंबित है, पुराने रेट लागू रहेंगे”
मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी प्रमोद दशोरा का कहना है कि –
“नई फर्म को लेकर निर्णय होने तक पुरानी दरों पर काम जारी रहेगा। जैसे ही निर्णय आएगा, बाकी बकाया भुगतान कर दिया जाएगा।”
लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह फैसला 13 दिन से लंबित है, जबकि दावा किया गया था कि 2 दिन में हल निकल जाएगा।
🏢 जयपुर से निर्णय लंबित, बैठक में कोरम न होने से देरी
इस मुद्दे पर निर्णय के लिए जयपुर स्थित शिक्षा परिषद को फाइल भेजी गई है।
➡️ लेकिन विभागीय अधिकारियों के अनुसार, परिषद की बैठक का कोरम पूरा नहीं हो पाया, जिससे निर्णय में देरी हो रही है।
प्रमोद दशोरा ने बताया कि जैसे ही सभी सदस्य उपस्थित होंगे, तुरंत बैठक कर फैसला लिया जाएगा।
🧾 पुराने फर्म के 3 महीने के बिल पास – बिना किसी ऑर्डर के!
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुरानी फर्म से बिना किसी लिखित आदेश के काम करवा कर, उनके तीन महीने के बिल भी पास कर दिए गए हैं।
👉 यह सीधा-सीधा नियमों का उल्लंघन है और इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की आशंका भी जताई जा रही है।
🗣️ समसा अधिकारी ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा
जब इस मुद्दे पर समग्र शिक्षा अभियान के कार्यक्रम अधिकारी नरेंद्र शर्मा से बात की गई, तो उन्होंने कहा –
“यह मामला सीडीईओ के अधीन है, हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है।”
इस रवैये से साफ है कि एक टेंडर में दो फर्मों की रस्साकशी में कर्मचारी पिस रहे हैं।
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✍️ रिपोर्ट: मेवाड़-मालवा न्यूज़ डेस्क
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