सलूंबर, 26 मई 2025 – उदयपुर जिले के सलूंबर उपखंड में स्थित भबराना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर तैनात डॉ. रामचंद्र शर्मा को रविवार को एपीओ (Awaiting Posting Order) कर दिया गया। यह फैसला सीएचसी इंचार्ज डॉ. पवन कुमार शर्मा ने लिया, जो अब विवाद का कारण बन गया है।
📍 पूरा मामला स्वास्थ्य सेवाओं में अनुशासन और अधिकार के दायरे को लेकर खड़ा हुआ है।
🩺 एपीओ आदेश पर उठे सवाल
सीएचसी इंचार्ज डॉ. पवन कुमार शर्मा द्वारा अचानक आदेश जारी कर डॉ. रामचंद्र शर्मा को झल्लारा बीसीएमओ कार्यालय में ड्यूटी पर भेज दिया गया।
❌ सीएमएचओ ने बताया आदेश को गलत
सलूंबर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. महेंद्र परमार ने इस आदेश को अवैध बताया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि:
“सीएचसी इंचार्ज को एपीओ जैसे प्रशासनिक आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने यह मामला बीसीएमएचओ डॉ. पुष्पेंद्र सिंह को उचित कार्रवाई हेतु सौंपा था।
⚠️ डॉक्टर रामचंद्र शर्मा का पक्ष
डॉ. शर्मा ने बताया कि एक पथरी के मरीज को दर्द से राहत के लिए इंजेक्शन लगाने की जरूरत थी। उन्होंने यह कार्य नर्सिंग स्टाफ से करवाने को कहा, लेकिन मरीज के परिजन डॉक्टर से ही इंजेक्शन लगाने की जिद करने लगे।
📌 घटना का विवरण:
- कुछ ही देर में 5-7 लोग आए, जिन्होंने धमकाना शुरू कर दिया
- एक व्यक्ति ने धक्का भी दिया
- डॉक्टर ने उच्च अधिकारियों को तत्काल सूचना दी
👉 डॉक्टर का दावा है कि उन्होंने कोई गलती नहीं की और उन्हें दुर्भावना के चलते एपीओ कर दिया गया।
🛑 न तो शिकायत, न ही कार्रवाई
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरी घटना को लेकर झल्लारा थाने में कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई। डॉक्टर ने बताया कि यह मामला “राजकार्य में बाधा” की श्रेणी में आता है, फिर भी कोई एफआईआर नहीं की गई।
अब डॉ. शर्मा इस अन्याय के खिलाफ उदयपुर एसपी से मुलाकात कर अपनी आपबीती सुनाएंगे और न्याय की मांग करेंगे।
🤝 हेल्थ सिस्टम में जवाबदेही जरूरी
यह मामला राजस्थान के ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरियों और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा को उजागर करता है। जब डॉक्टर खुद असुरक्षित महसूस करें और बिना किसी वैध कारण के ट्रांसफर या एपीओ हो जाए, तो इससे न केवल डॉक्टरों का मनोबल टूटता है, बल्कि आमजन की स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रभावित होती हैं।
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📢 निष्कर्ष:
इस प्रकरण ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों को पर्याप्त प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है? एपीओ जैसे निर्णय यदि नियमविरुद्ध लिए जाते हैं, तो इसका प्रभाव सीधे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर पड़ता है।
अब देखना होगा कि जिला प्रशासन और पुलिस इस पूरे मामले पर क्या रुख अपनाते हैं।
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