धरियावद और बड़ीसादड़ी क्षेत्र में फैले सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य और प्रादेशिक वन क्षेत्र में अवैध लकड़ी तस्करी एक गंभीर संकट बन चुका है। यहां खैर, सागवान जैसी बहुमूल्य लकड़ियों की तस्करी युद्ध स्तर पर की जा रही है, जिससे जंगल की जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंच रहा है।
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🔍 क्या है पूरा मामला?
धरियावद क्षेत्र के जंगलों में 2023 में 255 प्रकरण दर्ज हुए, जबकि 2024 में अब तक यह आंकड़ा 353 तक पहुंच चुका है। पिछले 4 वर्षों में कुल 1,017 प्रकरण दर्ज कर 48 लाख से अधिक का जुर्माना वसूला गया है। इससे स्पष्ट है कि वन तस्करी अब स्थानीय नहीं, बल्कि अंतरराज्यीय समस्या बन चुकी है।
🚛 कैसे होती है तस्करी?
वन तस्कर ग्रामीणों को लालच देकर दिन में चोरी छिपे कटाई करवाते हैं। कटाई के बाद लकड़ी को नदी-नालों और झाड़ियों में छिपा दिया जाता है। फिर रात के अंधेरे में ट्रैक्टर और पिकअप से तस्करी की जाती है। यदि कोई पीछा करे तो ट्रैक्टर को तेज रफ्तार में भगा कर छोड़ कर फरार हो जाते हैं।
📉 कमी स्टाफ की, बढ़ी चुनौती
धरियावद क्षेत्र में वन विभाग में 30% से अधिक पद खाली हैं। स्टाफ की कमी के कारण बड़े तस्करों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। विभाग केवल मजदूरों तक ही पहुंच पाता है, लेकिन असली मास्टरमाइंड अब तक पकड़ से बाहर हैं।
🧾 कुछ महत्वपूर्ण केस स्टडीज़
🪓 केस 01: बाबरू मीणा
बाबरू पुत्र किकिया मीणा को पारसोला वनखंड में सागवान की लकड़ी काटते पकड़ा गया। 6,000 रुपये जुर्माना और कुल्हाड़ी जब्त। साथी तस्कर फरार।
🌲 केस 02: उदा मीणा
मानिया मंगरा जंगल में 15,500 रुपये का जुर्माना। सवाल उठता है – एक मजदूर के पास इतनी बड़ी रकम कहां से आई?
🌳 केस 03: नाथिया मीणा
पहाड़ा वनखंड में कुल्हाड़ी की आवाज पर वन नाका की टीम पहुंची, लेकिन स्टाफ की कमी से आरोपी फरार हो गया। 6 लकड़ी के गट्टे जब्त।
📊 तथ्य जो चौंकाते हैं
वर्ष | दर्ज प्रकरण | जुर्माना राशि |
---|---|---|
2021 | 217 | ₹ 48 लाख+ |
2022 | 192 | |
2023 | 255 | |
2024 | 353 |
👉 सिर्फ जुर्माने से समाधान नहीं होगा, जड़ों तक जाना होगा।
🌍 अंतरराज्यीय तस्करी: दिल्ली और कांडला तक नेटवर्क
- खैर की लकड़ी के 100 गट्टे: ₹3 से ₹5 लाख
- सागवान की लकड़ी: ₹50,000 से ₹90,000 प्रति गट्ठा
तस्कर इन लकड़ियों को दिल्ली, कांडला जैसे बड़े बाजारों तक पहुंचा रहे हैं। यह सिर्फ चोरी नहीं, संगठित व्यापारिक अपराध बन चुका है।
🧠 समाधान क्या है?
- 🔹 स्थानीय ग्रामीणों की जागरूकता बढ़ाना
- 🔹 वन विभाग की संख्या में बढ़ोतरी
- 🔹 बड़े तस्करों की पहचान और गिरफ्तारी
- 🔹 GPS ट्रैकिंग सिस्टम और ड्रोन निगरानी
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📣 निष्कर्ष
जब तक स्थानीय समुदाय को वन संरक्षण के महत्व का ज्ञान नहीं होगा, तब तक केवल वन विभाग के प्रयासों से तस्करी को रोकना कठिन है। हमें जंगलों की रक्षा करनी है, क्योंकि जंगल हैं तो जीवन है।
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