300 वर्षों से टूटी परंपरा को फिर से जीवंत कर एक नई शुरुआत की गई है। पाली जिले के देसूरी के समीप स्थित घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांवों के राजपुरोहित हाल ही में उदयपुर सिटी पैलेस पहुंचे और वहां पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन पर शोक व्यक्त किया। इस पहल ने एक ऐतिहासिक रिश्ते को फिर से मजबूत कर दिया है।
300 वर्षों बाद रिश्तों की नई शुरुआत
डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के आग्रह पर पांचों गांवों के राजपुरोहित एक बार फिर सिटी पैलेस आए। यहां परम्परागत स्वागत-सम्मान हुआ और रिश्तों की एक नई कहानी लिखी गई। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि आने वाली पीढ़ियों में अब कोई दूरी नहीं रहेगी।
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कौन-कौन से हैं ये पांच गांव?
- घेनड़ी
- पिलोवणी
- वणदार
- रूंगड़ी
- शिवतलाव
ये सभी गांव मेवाड़ राज्य की आखिरी सीमा के समीप स्थित हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से इन गांवों के राजपुरोहितों का मेवाड़ राजघराने के साथ गहरा संबंध रहा है।
उपहारों के साथ सम्मान का आदान-प्रदान
राजपुरोहित अपने साथ तलवार और पारंपरिक उपहार लाए थे, जिसे उन्होंने लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ और उनके पुत्र हरितराज सिंह मेवाड़ को भेंट किया। इसके बाद डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने सभी का गर्मजोशी से स्वागत कर सम्मान किया।

क्या बोले राजपुरोहित?
परंपरा को फिर से जीवंत करने की खुशी
पिलोवणी गांव से आए रिटायर्ड IAS श्याम सिंह राजपुरोहित ने कहा कि,
“हमारे गांवों का सदियों से राजघराने से निकट का संबंध रहा है। समय के साथ यह परंपरा लुप्त हो गई थी, जिसे अब फिर से पुनर्जीवित किया गया है।“
उन्होंने यह भी कहा कि,
“हमारी बहनें वर्षों तक सिटी पैलेस में राखी भेजती रही हैं, और अब यह परंपरा फिर से प्रारंभ होगी।“
भोजन ग्रहण करने में परहेज
चूंकि ब्राह्मण और राजपुरोहित समुदाय में शोक के समय भोजन ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए पूर्व शोक बैठक के समय बिना भोजन किए वापस लौट गए थे। अब, सभी ने नए जोश और अपनत्व के साथ रिश्तों को पुनर्जीवित किया।
300 साल पहले क्यों टूटी थी यह परंपरा?
- हल्दीघाटी युद्ध के दौरान नारायण दास राजपुरोहित के बलिदान के बाद महाराणा प्रताप ने उनके वंशजों को पांच गांव जागीर में दिए थे।
- हर वर्ष सिटी पैलेस से बहनों को चूंदड़ी भेजने की परंपरा थी।
- महल से अचानक चूंदड़ी भेजना बंद हो गया, फिर भी गांवों ने तीन दशक तक राखी भेजी।
- बाद में जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो बुजुर्गों ने निर्णय लिया कि बिना बुलावे के कोई महलों में नहीं जाएगा।
- अब, लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के आमंत्रण से यह ऐतिहासिक संबंध फिर से स्थापित हुआ।
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डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का संदेश
डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा:
“मेवाड़, इन पांचों गांवों के स्नेह और अपनत्व को हमेशा संजो कर रखेगा। अब यह संबंध और भी प्रगाढ़ होंगे और आने वाली पीढ़ियों को इसका गौरवशाली संदेश मिलेगा।“
उन्होंने यह भी वादा किया कि यह रिश्ता हर त्योहार पर बना रहेगा और अब कोई दूरी नहीं आएगी।

निष्कर्ष
पांच गांवों और मेवाड़ राजपरिवार के बीच एक बार फिर रिश्तों की मिठास लौट आई है। इस पहल ने इतिहास के पन्नों को फिर से सुनहरा बना दिया है।
आइए हम भी इस परंपरा का सम्मान करें और अपने रिश्तों को हमेशा मजबूत बनाएं।
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