रतलाम ज़िले के जावरा तहसील में नामांतरण को लेकर उठा विवाद अब न्यायालय तक पहुँच गया है। एक विवादित नामांतरण आदेश को लेकर वाद दायर किया गया है, जिसमें तहसीलदार संदीप इवने को “अयोग्य” घोषित करने की मांग की गई है। यह मामला मध्य प्रदेश में अपनी तरह का पहला हो सकता है, जिसमें किसी राजस्व अधिकारी की वैधानिकता पर सीधा सवाल खड़ा किया गया है।
📝 मामला क्या है? जानिए पूरी पृष्ठभूमि
बामनखेड़ी के निवासी बाबू खां और मोहम्मद खां ने अपने अधिवक्ता ओमप्रकाश बघेरवाल के माध्यम से यह वाद न्यायालय में प्रस्तुत किया है। वाद के अनुसार, वादियों की मां नूरजहां बी ने वर्ष 1968-69 में जो भूमि खरीदी थी, उसी पर उनका वैध स्वामित्व है और वह लंबे समय से उस पर मकान बनाकर निवास कर रहे हैं।
🚨 नामांतरण आदेश पर सवाल – बिना सूचना, दो बार नामांतरण
वादियों ने आरोप लगाया है कि उनकी बहन मुन्नी बी के निधन के लगभग 5 साल बाद उनके बेटे ने फर्जी वसीयत के आधार पर नामांतरण कराने की कोशिश की थी, जिसे तहसीलदार ने 30 जनवरी 2024 को निरस्त कर दिया था।
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका – इसके बाद मुन्नी बी के पति भूरू खां और उनके बेटों ने पुनः नामांतरण का आवेदन किया। वादियों के अनुसार, 22 जुलाई 2024 को तहसीलदार ने बिना व्यक्तिगत सूचना दिए नामांतरण का आदेश पारित कर दिया। इसके बाद 9 अप्रैल 2025 को फिर से अवैध विक्रय पत्र के आधार पर नामांतरण किया गया।
📌 वादियों का कहना है कि तहसीलदार ने जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन किया और विधिक प्रक्रिया को दरकिनार किया।
🧑⚖️ न्यायालय की भूमिका – प्रमुख सचिव से लेकर तहसीलदार तक को नोटिस
इस मामले में न्यायालय ने गंभीरता दिखाते हुए मध्य प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव, कमिश्नर, रतलाम कलेक्टर, और खुद तहसीलदार संदीप इवने को नोटिस जारी कर दिए हैं।
अगली सुनवाई 29 अप्रैल 2025 को निर्धारित की गई है।
🗣️ तहसीलदार की प्रतिक्रिया – ‘वसीयत और विक्रय पत्र के आधार पर किया नामांतरण’
विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए तहसीलदार संदीप इवने ने कहा:
“नामांतरण की कार्रवाई वसीयत और रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के आधार पर की गई है। यदि पक्षकार असंतुष्ट हैं, तो वे अपील कर सकते हैं। नोटिस प्राप्त होने पर हम उचित पक्ष प्रस्तुत करेंगे।”
📌 विशेषज्ञों की राय – मध्यप्रदेश में पहला ऐसा मामला
कानूनी जानकारों के अनुसार, यह संभवतः मध्यप्रदेश का पहला मामला है जिसमें किसी तहसीलदार को अयोग्य घोषित करने की विधिक मांग की गई है। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।

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