उदयपुर के खेरवाड़ा थाना क्षेत्र से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसमें 19 वर्षीय युवक अभिषेक मीणा को पुलिस ने लूट की योजना के आरोप में हिरासत में लिया, लेकिन अब वह वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है।
📍 यह मामला न सिर्फ पुलिस प्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि मानवाधिकारों के हनन का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
💥 घटना का पूरा विवरण: कैसे बिगड़ी युवक की हालत?
🚓 बिना सूचना पुलिस उठा ले गई
बंजारिया गांव निवासी अभिषेक की मां लीलादेवी, जो खुद उदयपुर रोडवेज में कार्यरत हैं, ने बताया कि पुलिस ने उनके बेटे को 17 अप्रैल को बिना किसी सूचना के उठा लिया।
रातोंरात उसे खेरवाड़ा के एक निजी अस्पताल ले जाया गया और बाद में उदयपुर के एमबी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया।
🔴 अभिषेक इस समय MICU में वेंटिलेटर सपोर्ट पर है।
😢 माँ की पुकार: “मेरे इकलौते बेटे को क्यों मारा?”
लीलादेवी ने रोते हुए कहा:
“मेरे बेटे ने किसी की जान नहीं ली, फिर भी उसकी ये हालत क्यों कर दी गई?”
उनका कहना है कि बेटे के सीने, गले और शरीर पर कई गंभीर चोटें हैं। पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटे जाने के आरोप लगाए गए हैं।
😷 सुरक्षा नियमों की अनदेखी: MICU में बिना मास्क तैनात पुलिसकर्मी
लीलादेवी ने यह भी आरोप लगाया कि MICU में 24 घंटे तैनात पुलिस कॉन्स्टेबल बिना मास्क के मरीज के सामने बैठे रहते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है।
🧑⚖️ मानवाधिकार आयोग की सख्त टिप्पणी
राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य जस्टिस रामचंद्र सिंह झाला ने इस मामले को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया है।
उन्होंने कहा:
“28 साल बाद भी पुलिस हिरासत में मारपीट की घटनाएं सभ्य समाज के लिए शर्मनाक हैं।”
उदयपुर एसपी योगेश गोयल को निर्देश दिए गए हैं कि खेरवाड़ा डिप्टी और अन्य उच्चाधिकारियों से इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए।
🚨 पुलिस का बचाव: “डर से बिगड़ी तबीयत”
थानाधिकारी दलपत सिंह राठौड़ का कहना है कि युवक की तबीयत गिरफ्तारी के डर से बिगड़ी है, न कि मारपीट से। लेकिन डॉक्टरों की रिपोर्ट और शारीरिक चोटों की पुष्टि इसके विपरीत इशारा करती है।
📢 मीडिया ने उठाया मुद्दा, सोशल मीडिया पर बवाल
इस घटना को सबसे पहले स्थानीय मीडिया ने उजागर किया। देखते ही देखते मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जहाँ लोगों ने पुलिस की निर्दयता और जवाबदेही पर सवाल उठाए।
🧭 आगे क्या?
👉 अब सभी की निगाहें एसपी रिपोर्ट और मानवाधिकार आयोग की कार्रवाई पर हैं।
👁🗨 इस प्रकार के मामलों से यह स्पष्ट होता है कि पुलिस सुधार और मानवाधिकार जागरूकता आज भी एक बड़ी ज़रूरत हैं।

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