राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम के अंतर्गत उदयपुर जिले में एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव देखने को मिल रहा है। पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन के तहत अब जिले में 4 नई पंचायत समितियां बनाई गई हैं, जिससे समितियों की कुल संख्या 16 से बढ़कर 20 हो जाएगी।
यह पुनर्गठन राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक दक्षता, जनसंख्या घनत्व और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए किया गया है। इससे ग्रामीण विकास की योजनाएं और अधिक सटीकता से लागू की जा सकेंगी।
कौन-कौन सी हैं नई पंचायत समितियां?
उदयपुर जिले में बनी नई पंचायत समितियों के नाम इस प्रकार हैं:
- सुलाव – पंचायत समिति कोटड़ा से अलग कर बनाई गई।
- ओगणा – पंचायत समिति झाड़ोल और फलासिया से।
- कल्याणपुर – पंचायत समिति ऋषभदेव से।
- नाई – पंचायत समिति गिर्वा से।
इन समितियों के गठन से प्रशासनिक क्षेत्रफल में संतुलन आएगा और स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान अधिक कुशलता से किया जा सकेगा।
599 ग्राम पंचायतें, अंतिम मुहर बाकी
अब तक जिले में कुल 495 ग्राम पंचायतें थीं, लेकिन पुनर्गठन के बाद यह संख्या बढ़कर 599 ग्राम पंचायतें हो जाएगी। हालांकि अभी इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगना बाकी है।
आपत्तियों के लिए खुला है दरवाजा
राज्य सरकार ने आम जनता को इस पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अवसर दिया है। नागरिक 6 मई 2025 तक संबंधित उपखंड अधिकारी, तहसीलदार अथवा जिला कलेक्टर कार्यालय में अपनी आपत्तियां प्रस्तुत कर सकते हैं।
👉 इसके बाद इन आपत्तियों की समीक्षा कर फाइनल प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जाएगा, जिसे अंतिम मंजूरी मिलने के बाद लागू किया जाएगा।
27 ग्राम पंचायतें नगर निगम/पालिका में शामिल
पुनर्गठन के दौरान 27 ग्राम पंचायतों को नगर निगम या नगर पालिका में भी शामिल कर लिया गया है। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्र में कुल 468 पंचायतें शेष रह गई हैं।
नए ग्राम पंचायतों की स्थिति
- नवसृजित ग्राम पंचायतें: 131
- पुनर्गठित ग्राम पंचायतें: 221
इस बदलाव से नगरीय क्षेत्रों का भी विस्तार होगा और नगर निकायों की प्रशासनिक सीमाएं अधिक संगठित होंगी।
क्यों ज़रूरी था पुनर्गठन?
राज्य सरकार का मानना है कि पंचायत पुनर्गठन से:
- प्रशासनिक बोझ कम होगा
- योजनाओं का क्रियान्वयन सुगमता से होगा
- जन प्रतिनिधियों की जवाबदेही बढ़ेगी
- ग्राम विकास योजनाओं का लाभ अधिक लोगों तक पहुंचेगा
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निष्कर्ष
उदयपुर में पंचायतों का पुनर्गठन केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सशक्त ग्रामीण भारत की ओर कदम है। इससे न केवल संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण संभव होगा, बल्कि स्थानीय स्वशासन की भावना भी मजबूत होगी।
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