उदयपुर की आवरी माता मंदिर में रहने वाली 75 वर्षीय हथिनी ‘रामू’ ने शुक्रवार शाम को दम तोड़ दिया। डेढ़ महीने से गंभीर रूप से बीमार चल रही इस हथिनी की कहानी न केवल दुखद है, बल्कि पशुओं के साथ होने वाली अमानवीयता को भी उजागर करती है।
📌 रामू की दर्दनाक कहानी – एक नज़र
राजस्थान के उदयपुर में स्थित आवरी माता मंदिर में वर्षों से रह रही हथिनी ‘रामू’ लंबे समय से बीमार थी। क्रोनिक फुट रोट नामक संक्रमण ने उसके पैरों को इस हद तक कमजोर कर दिया था कि वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। उसके पैरों में घाव हो गए थे और नाखून तक टूट चुके थे।
डॉक्टरों की टीम ने बताया कि रामू के तलवों की हालत इतनी खराब हो गई थी कि चलते-चलते उसका तलवा पूरी तरह से अलग हो गया।
🔍 भीख मंगवाने और आस्था का शोषण
https://mewarmalwa.com की रिपोर्ट्स के अनुसार, पशु चिकित्सकों ने बताया कि हाथी को धार्मिक गतिविधियों से जोड़कर भीख मंगवाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। मथुरा से आए डॉक्टर बेजुराज ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम पर जानवरों का शोषण आम बात हो गई है।
🏥 इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी गई
रामू की गंभीर हालत को देखते हुए अनंत अंबानी की संस्था वनतारा (जामनगर) और मथुरा से विशेषज्ञ डॉक्टरों को बुलाया गया।
- हथिनी को प्रतिदिन 40 से 60 लीटर ड्रिप दी जा रही थी।
- हर 36 घंटे में हाइड्रा क्रेन से करवट दिलवाई जा रही थी।
- फिर भी रामू की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया और शुक्रवार शाम 6 बजे उसने अंतिम सांस ली।
🕊️ रामू का जीवन – बिहार से उदयपुर तक
इस हथिनी को बिहार से लाकर उदयपुर के आवरी माता मंदिर में रखा गया था। मंदिर में रहने वाले नरेश दास बाबा, जो रामानंद निर्मोही अखाड़े के साधु हैं, ने उसे वर्षों से मंदिर परिसर में रखा हुआ था।
महावत आकाश गोस्वामी के अनुसार, रामू को हर साल महाशिवरात्रि पर महाकाल मंदिर ले जाया जाता था।
इस वर्ष महाशिवरात्रि के बाद जब रामू को मंदिर वापस लाया जा रहा था, तब पशुप्रेमियों ने विरोध किया। आरोप लगाया गया कि हथिनी को यातना दी जा रही है। कानून का डर दिखाकर हथिनी को मंदिर नहीं लाया जा सका।
इस कारण वह करीब 15 दिन तक एक ही जगह पर खड़ी रही, जिससे उसकी हालत और बिगड़ती गई।
⚠️ सवाल जो हमें खुद से पूछने चाहिए
- क्या धार्मिक परंपराओं के नाम पर पशुओं का शोषण जायज है?
- क्या भीख मंगवाने और आस्था के नाम पर जानवरों को उम्रभर यातनाएं दी जानी चाहिए?
- जब तक वह जीवित रही, क्या हमने रामू के दर्द को महसूस किया?
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🔖 निष्कर्ष:
रामू की मौत एक चेतावनी है। वह हमें ये बताने आई थी कि आस्था के नाम पर की जा रही क्रूरता अब रुकनी चाहिए। पशुओं की सेवा केवल पूजा तक सीमित न हो, बल्कि उनके स्वस्थ जीवन और सम्मान के अधिकार को भी सुनिश्चित करना चाहिए।
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